...

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याद.........
शायद तुम आज फिर से साथ आई,
बहती हवाओ संग अपनी याद भी लाई….


क्या तुम्हे याद है
जो पेड़ साथ लगाया था,
बढ़ती हुए शाखाओं संग
सपनों को भी बढ़ाया था…..


क्या तुम्हे याद है
यूं बालों पर हात फिराया करते थे,
उलझे हुए बालो में
खुद भी उलझा करते थे….


क्या तुम्हे याद है
जो फूल मैंने दिया था,
फिर आपने उसे चूमकर
एक किताब में शाबुत रखा था…….


क्या तुम्हे याद है
साथ मुस्तकबिल के बारे में सोचा था,
वहाॅ हम दोनो ने
एकदूजे को थामे रखा था…..


क्या तुम्हे याद है
“एक प्रवास” की वो कहानी,
कहते थे “सरकार” प्यार से
अब यही यादे है भूलानी……..



© Rजत