...

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अगर ख़याल हूँ
अगर अभी भी मैं कहीं तेरे खयाल में हूँ
तो क्या तेरे ख्याल की चाह में मैं मेरी उम्र गुज़ार लूँ

अगर अभी भी मैं तेरी पलकों में बिखरा हुआ ख्वाब हूँ
तो क्या उसी उल्फत की आह पे अपना सब कुछ मैं वार दूँ

अगर होती है अभी भी तुझे मेरी तमन्ना-ए-गलतफहमी
तो क्या मैं तेरी गलतफहियों को भी हर हद तक सवाँर दूँ

दरमियाँ जो कुछ नही की दूरियाँ हैं वो ठीक हैं
अच्छा है कि आज तू मेरा और मैं तेरा ख्याल हूँ

पूँछा है अक्सर खुदको खोके मुझ में तूने
ऐ ज़ीनत मैं तो बस तेरी सीरत का सवाल हूँ