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मुक्तक : आपके ही लिए
हर किसी से लड़ा आपके ही लिए।
मैं अलग चल पड़ा आपके ही लिए।।
मुझको दुनिया ने लिखने से रोका बहुत।
मुझको लिखना पड़ा आपके ही लिए।।
जो भी अबतक लिखा आपके ही लिए।
मेरी हर इक दिशा आपके ही लिए।।
मैं तो बस प्रेम का इक उपन्यास हूं।
प्रेम की हर कथा आपके ही लिए।।
एक बादल हुआ आपके ही लिए।
थोड़ा पागल हुआ आपके ही लिए।।
सारे जग के लिए ऊष्म आदित्य था।
मैं तो शीतल हुआ आपके ही लिए।।
सबकी बातें सहीं आपके ही लिए।
मुझमें खुशियां रहीं आपके ही लिए।।
मैंने अपने लिए कुछ लिखा ही नहीं।
सारी ग़ज़लें कहीं आपके ही लिए।।
खोजा रस्ता नया आपके ही लिए।
खो दी सारी हया आपके ही लिए।।
कोई वापस न लौटा जहाँ से कभी।
मैं वहाँ भी गया आपके ही लिए।।
लिखता हर पल रहा आपके ही लिए।
गीत नगमा गुहा आपके ही लिए।।
प्रश्न था ये कि शायर हुए आप क्यों।
मैंने हँसकर कहा आपके ही लिए।।
© आदित्य तिवारी
मैं अलग चल पड़ा आपके ही लिए।।
मुझको दुनिया ने लिखने से रोका बहुत।
मुझको लिखना पड़ा आपके ही लिए।।
जो भी अबतक लिखा आपके ही लिए।
मेरी हर इक दिशा आपके ही लिए।।
मैं तो बस प्रेम का इक उपन्यास हूं।
प्रेम की हर कथा आपके ही लिए।।
एक बादल हुआ आपके ही लिए।
थोड़ा पागल हुआ आपके ही लिए।।
सारे जग के लिए ऊष्म आदित्य था।
मैं तो शीतल हुआ आपके ही लिए।।
सबकी बातें सहीं आपके ही लिए।
मुझमें खुशियां रहीं आपके ही लिए।।
मैंने अपने लिए कुछ लिखा ही नहीं।
सारी ग़ज़लें कहीं आपके ही लिए।।
खोजा रस्ता नया आपके ही लिए।
खो दी सारी हया आपके ही लिए।।
कोई वापस न लौटा जहाँ से कभी।
मैं वहाँ भी गया आपके ही लिए।।
लिखता हर पल रहा आपके ही लिए।
गीत नगमा गुहा आपके ही लिए।।
प्रश्न था ये कि शायर हुए आप क्यों।
मैंने हँसकर कहा आपके ही लिए।।
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