#महारथी कर्ण वध
गगन में बद्घ कर दीपित नयन को, किए था कर्ण जब सुर्यास्थ मन को!
लगा शर एक ग्रीवा में संभल के, उड़ी ऊपर प्रश्वा तन से निकल के!
गिरा मस्तक मही पर छिन्न होकर, तपस्या धाम तन से भिन्न होकर!
छिटक कर जो उड़ा आलोक तन से, हुआ एकात्म वह मिलकर तपन से!
उठी कौंतेय की जयकार रण में, मचा घनघोर हाहाकार रण में!
सुयोधन बालकों सा रो रहा था, खुशी से भीम पागल हो...
लगा शर एक ग्रीवा में संभल के, उड़ी ऊपर प्रश्वा तन से निकल के!
गिरा मस्तक मही पर छिन्न होकर, तपस्या धाम तन से भिन्न होकर!
छिटक कर जो उड़ा आलोक तन से, हुआ एकात्म वह मिलकर तपन से!
उठी कौंतेय की जयकार रण में, मचा घनघोर हाहाकार रण में!
सुयोधन बालकों सा रो रहा था, खुशी से भीम पागल हो...