एक और उम्मीद।।।
बहुत जल्दी बहुत दूर निकल आई हूं,
मगर सफर बहुत डरावना था।
जहां सब कुछ था मगर ,कुछ भी अपना नहीं था।
बहुत कुछ भूलने की चाहत में,
सब कुछ याद रह गया।
उस शहर को तो छोड़ आई हूं मगर,
वहां कई मिन्नत और फरियाद रह गया।
मलाल आज भी है कि हमने कोशिश ही कम की,
कई कोशिश करने के बाद भी मलाल रह गया।
यह आंखें तरसी बहुत थी रातों में बरसी बहुत थी,
सुबह होते ही कई रोज इनमें मस्ती भी बहुत थी।
जो कभी कमता ही नहीं था,
वो बेशुमार डर था...
मगर सफर बहुत डरावना था।
जहां सब कुछ था मगर ,कुछ भी अपना नहीं था।
बहुत कुछ भूलने की चाहत में,
सब कुछ याद रह गया।
उस शहर को तो छोड़ आई हूं मगर,
वहां कई मिन्नत और फरियाद रह गया।
मलाल आज भी है कि हमने कोशिश ही कम की,
कई कोशिश करने के बाद भी मलाल रह गया।
यह आंखें तरसी बहुत थी रातों में बरसी बहुत थी,
सुबह होते ही कई रोज इनमें मस्ती भी बहुत थी।
जो कभी कमता ही नहीं था,
वो बेशुमार डर था...