क्या मेरा मुरलीधर कुछ नहीं।
जब कान्हा को राधा से प्रेम था,
तो रुक्मणी कहां से आई।
पलके बिछाई बैठी रुक्मणी कर रही कान्हा का इंतजार,
तो राधा का प्रेम तब कुछ नहीं।
अधिकार तो कान्हा पर रुक्मणी का है,
तो फिर राधा कहां से...
तो रुक्मणी कहां से आई।
पलके बिछाई बैठी रुक्मणी कर रही कान्हा का इंतजार,
तो राधा का प्रेम तब कुछ नहीं।
अधिकार तो कान्हा पर रुक्मणी का है,
तो फिर राधा कहां से...