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“मेरी नानी”
ज़माने भर की तकलीफें समेटे मुस्कुराती थी
मेरी मां मुझको अब भी वो,कहानी इक सुनाती है
वो शहज़ादी जो हंसती थी,जो हंसती थी हंसाती थी
कोई रूठा भी हो उससे,उसे ख़ुद ही मनाती थी
वो अब रूठी है ख़ुद ऐसे,मनाने से नही मानी
जो झूटा ही सही लेकिन,बहुत थोड़ा सताती थी
© Arshi zaib
मेरी मां मुझको अब भी वो,कहानी इक सुनाती है
वो शहज़ादी जो हंसती थी,जो हंसती थी हंसाती थी
कोई रूठा भी हो उससे,उसे ख़ुद ही मनाती थी
वो अब रूठी है ख़ुद ऐसे,मनाने से नही मानी
जो झूटा ही सही लेकिन,बहुत थोड़ा सताती थी
© Arshi zaib
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