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तालाश में हूँ।
अरसे से फ़िराक में हैं मुझे मिटाने की
'सत्य कभी मरता नहीं' इसी विश्वास में हूँ।
उलझता हूँ वासनाओं के जाल में बार-बार
हर बार लगता है किसी 'कारावास' में हूँ।
कठिनाई होती है पत्थर-सा बैठने में पर
रात-भर जागकर भी पूरे होशो-हवास में हूँ।
आधी उम्र जा चुकी अंधेरे में ठोकरें खाकर
उजाला मेरे घर भी होगा इसी आस में हूँ।
उलझनें और जिम्मेदारियाँ ताउम्र साथ रहेंगी
फिर भी सुकून भरी 'जिंदगी की तलाश' में हूँ।
© VK
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