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संतूर मम्मी भवः
जब से यह संसार बना, यह प्रकृति बनी.. इस प्रकृति को माँ कहा गया। इस नामकरण से यह पता चला है कि माँ शब्द में कितनी गहराई.. कितनी विशालता..है और यह शब्द न जाने कितने अर्थ समेटे हुए है।अब बात करते हैं..माँ की। युगों- युगों से चला आ रहा है कि जब-जब स्त्री ने माँ का अवतार लिया,वह न केवल उस संतान के लिए..अपितु समूचे समाज के लिए प्रेरणादायी रही। उसने अपने आप को ऐसे साँचे में ढाल लिया जहाँ वह सारे-रिश्ते मान-मर्यादा को निभाने में खुद को लगभग भूल बैठी।यहाँ तक कि हमारे समाज में उसको दिए जाने वाले आशीर्वाद में भी वह और रिश्तों से जानी गई। लेकिन अब वक्त करवट ले रहा है।अब न केवल समाज के प्रति.. न केवल संतान के प्रति अपना दायित्व बखूबी निभा रही हैं बल्कि वे स्वयं के लिए भी जी रही हैं।सारी व्यस्त दिनचर्या में से वह अपने लिए वक्त निकाल कर अपनी सेहत,अपने पर्सनालिटी और गुड-लुक पर ध्यान दे रही हैं और यह बदलाव बहुत प्रशंसनीय है। अब 30 से 40 या उससे ऊपर की उम्र की महिला को बच्चों की माँ ना कहकर उनकी बड़ी बहन कहा जाता है, तो उस माँ के चेहरे की वह चमक सौ बिजलियों की चमक को फ़ीकी कर दे।

विज्ञापनों ने भी इस विचार को मज़ेदार तड़का लगाया। विज्ञापन की दुनिया की नजरों से बात की जाए तो मम्मियां अब संतूर- मम्मी दिखती हैं। मुझे खुद ऐसी मम्मियों को देखकर बड़ा सुखद अहसास होता है। मैं उन मम्मियों की इस बदलाव के लिए बलाएँ उतारती हूँ... नजर न लगे किसी की... ।

मातृ-दिवस के इस अवसर पर सोचती हूँ कि मुझे जब किसी को बड़ी होने के नाते आशीर्वाद देना हो तो कहूँगी—' संतूर मम्मी भव’’।आप सभी संतूर-मम्मियों को मातृ दिवस की अनेकानेक शुभकामनाएं।आप सभी खिलती रहें और इस सृष्टि को महकाती रहें।


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© ©सीमा शर्मा 'असीम'