बचपन के गलियारों में
बचपन के गलियारो में जब भी घूमती हूँ,
यादों की पोटली साथ ले ही आती हूँ।
वो स्नेह के पल वो ममता भरा हाथ,
ऐसा लगता है कभी न छूटे इनसे मेरा साथ।
लेकिन आज भी भीड़ में अपने आप को खोजती हूँ,
हर आँचल में वो सुकून के पल तलाशती हूँ।
पर आज भी तीर भालों से छलनी होती हूँ,
और अनेक काले सायों के सान्निध्य में जीती हूँ।
उजियारा है मेरे ही अन्दर इसकी पुष्टी भी करती हूँ,
पर न जाने...
यादों की पोटली साथ ले ही आती हूँ।
वो स्नेह के पल वो ममता भरा हाथ,
ऐसा लगता है कभी न छूटे इनसे मेरा साथ।
लेकिन आज भी भीड़ में अपने आप को खोजती हूँ,
हर आँचल में वो सुकून के पल तलाशती हूँ।
पर आज भी तीर भालों से छलनी होती हूँ,
और अनेक काले सायों के सान्निध्य में जीती हूँ।
उजियारा है मेरे ही अन्दर इसकी पुष्टी भी करती हूँ,
पर न जाने...