न जाने क्यूं
उम्मीद थी जिनसे,
न जाने क्यूं,
उम्मीदों पर हमारी ,वो पानी फ़ेर गए।
भरोसा था जिन पर,
न जाने क्यूं,
वो भरोेसा हमारा तोड़ गए।
बात जो करनी चाही उनसे,
न जाने क्यूं,
खफ़ा होकर,
वो मौन हो गए।
बढ़ा जब मित्रता का हाथ,
दोस्ती के उस पावन...
न जाने क्यूं,
उम्मीदों पर हमारी ,वो पानी फ़ेर गए।
भरोसा था जिन पर,
न जाने क्यूं,
वो भरोेसा हमारा तोड़ गए।
बात जो करनी चाही उनसे,
न जाने क्यूं,
खफ़ा होकर,
वो मौन हो गए।
बढ़ा जब मित्रता का हाथ,
दोस्ती के उस पावन...