सच्ची दिवाली 🪔
मैं नहीं मानती ऐसे त्योहार को त्योहार,
जिसमें खुशियों की सिर्फ ऊपरी परतें हों, और अंदर का मन ईर्ष्या और द्वेष से भरा हो।
जहां हंसी सिर्फ होंठों तक सीमित हो, और दिल के दर्द कोई सुनने वाला न हो।
जहां सब कुछ दिखावे के लिए हो, और इंसानियत कहीं खो गई हो।
ऐसी झूठी और खोखली दिवाली मुझे स्वीकार नहीं।
कहां खो गई वह दिवाली जो रिश्तों को जोड़ती थी,
जो दिलों में एक-दूसरे के लिए प्यार और अपनापन भरती थी?
आज लोग अपने दर्द छुपा कर हंसते हैं,
खर्चों के बोझ तले दबे हुए हैं, फिर भी बाहरी रौशनी में अपनी परेशानियों को छुपाने की कोशिश करते हैं।
क्या पटाखों का शोर दिलों की खामोशियों को दबा सकता है?
क्या झूठी हंसी, सच्ची खुशियोंकी जगह ले सकती है?
दिवाली का असली अर्थ तब समझ आता है,
जब हर घर में रौशनी केवल बाहर नहीं, बल्कि अंदर भी जलती हो।
जहां हर गरीब की झोपड़ी में भी उम्मीद का एक दीया जलता हो, जहां रिश्तों में दरारें नहीं, समझदारी की मजबूत डोर हो।
जहां दिखावा नहीं, सच्चा प्यार हो।
मुझे चाहिए ऐसी दिवाली,
जो अपनेपन का एहसास कराए,
जो हर किसी की जिंदगी में प्यार और खुशियां लाए।
आओ, मिलकर बनाएं ऐसा समाज, जहां हर दिल सच में मुस्कुराए,
जहां त्योहार का मतलब सिर्फ खुद की खुशियां नहीं, बल्कि दूसरों के आंसू भी पोंछना हो।
जहां हर दीपक एक-दूसरे के अंधेरे को मिटाए, और समाज में नई रौशनी लाए।
आओ मिलकर मनाएं सच्ची दिवाली,
जिसमें हर दिल की उदासी मिटे, और सच्ची खुशी की लौ जले।
जब ऐसा होगा तभी त्योहार सच में त्योहार कहलाएंगे और तभी होगी असली वाली "हैप्पी" दिवाली!
🪔 🪷✨
जिसमें खुशियों की सिर्फ ऊपरी परतें हों, और अंदर का मन ईर्ष्या और द्वेष से भरा हो।
जहां हंसी सिर्फ होंठों तक सीमित हो, और दिल के दर्द कोई सुनने वाला न हो।
जहां सब कुछ दिखावे के लिए हो, और इंसानियत कहीं खो गई हो।
ऐसी झूठी और खोखली दिवाली मुझे स्वीकार नहीं।
कहां खो गई वह दिवाली जो रिश्तों को जोड़ती थी,
जो दिलों में एक-दूसरे के लिए प्यार और अपनापन भरती थी?
आज लोग अपने दर्द छुपा कर हंसते हैं,
खर्चों के बोझ तले दबे हुए हैं, फिर भी बाहरी रौशनी में अपनी परेशानियों को छुपाने की कोशिश करते हैं।
क्या पटाखों का शोर दिलों की खामोशियों को दबा सकता है?
क्या झूठी हंसी, सच्ची खुशियोंकी जगह ले सकती है?
दिवाली का असली अर्थ तब समझ आता है,
जब हर घर में रौशनी केवल बाहर नहीं, बल्कि अंदर भी जलती हो।
जहां हर गरीब की झोपड़ी में भी उम्मीद का एक दीया जलता हो, जहां रिश्तों में दरारें नहीं, समझदारी की मजबूत डोर हो।
जहां दिखावा नहीं, सच्चा प्यार हो।
मुझे चाहिए ऐसी दिवाली,
जो अपनेपन का एहसास कराए,
जो हर किसी की जिंदगी में प्यार और खुशियां लाए।
आओ, मिलकर बनाएं ऐसा समाज, जहां हर दिल सच में मुस्कुराए,
जहां त्योहार का मतलब सिर्फ खुद की खुशियां नहीं, बल्कि दूसरों के आंसू भी पोंछना हो।
जहां हर दीपक एक-दूसरे के अंधेरे को मिटाए, और समाज में नई रौशनी लाए।
आओ मिलकर मनाएं सच्ची दिवाली,
जिसमें हर दिल की उदासी मिटे, और सच्ची खुशी की लौ जले।
जब ऐसा होगा तभी त्योहार सच में त्योहार कहलाएंगे और तभी होगी असली वाली "हैप्पी" दिवाली!
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