चांदनी रात...
जब सूरज की किरणें
तन को झुलसती है
तब चाँद की ये रौशनी
मन को ठंडक पहुंचाती है।
हो कितना भी मन में क्रोध
देख कर इन्हें
शांत हो जाता है
तपता हुआ अग्नि कुण्ड ।
गगन में चमकते ये चाँद तारें
लगता है जैसे खिला हो फूल
मन की बगिया में
रात के चादर तले बेचैनी सी बातें करती है
परत दर परत कई राज खुलते जाते हैं
इस चाँद की रौशनी में
चाँद से उतरी हुई कविता
नहाकर रुपहली रौशनी में
हौले हौले से मेरे मन को
अजीब सी हलचल कर जाती है
जब भी देखता हूँ उसे
आसमान में चमकते हुए
ख्यालों मे एक नूर झलक दे जाती है ।
जियो तो तारे की चमक सी
भले ही एक दिन ही सही
पर एक पल चमक।
© राज
तन को झुलसती है
तब चाँद की ये रौशनी
मन को ठंडक पहुंचाती है।
हो कितना भी मन में क्रोध
देख कर इन्हें
शांत हो जाता है
तपता हुआ अग्नि कुण्ड ।
गगन में चमकते ये चाँद तारें
लगता है जैसे खिला हो फूल
मन की बगिया में
रात के चादर तले बेचैनी सी बातें करती है
परत दर परत कई राज खुलते जाते हैं
इस चाँद की रौशनी में
चाँद से उतरी हुई कविता
नहाकर रुपहली रौशनी में
हौले हौले से मेरे मन को
अजीब सी हलचल कर जाती है
जब भी देखता हूँ उसे
आसमान में चमकते हुए
ख्यालों मे एक नूर झलक दे जाती है ।
जियो तो तारे की चमक सी
भले ही एक दिन ही सही
पर एक पल चमक।
© राज