...

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कृष्ण
कृष्ण प्रेम हैं, कृष्ण प्राण हैं,
कृष्ण आत्मसमर्पण, कृष्ण आत्मत्राण है।

कृष्ण पर्वत की श्रृंखला हैं,
कृष्ण सागर की गहराई,
कृष्ण धरा की माटी हैं,
कृष्ण गगन की ऊँचाई।

कृष्ण बाँसुरी की तान हैं,
कृष्ण शंखनाद भी,
कृष्ण सोलह श्रृंगार हैं,
कृष्ण ही हैं सादगी।
कृष्ण भक्ति का हैं मंदिर,
युद्ध का मैदान भी,
कृष्ण नारी का सम्मान,
पौरुष की जान भी।

कृष्ण अथाह, अनंत हैं,
कृष्ण एक कण में भी,
कृष्ण रास-वन में हैं,
कृष्ण समर-रण में भी।

कृष्ण शक्ति का हैं स्त्रोत,
प्रेम का प्रवाह भी,
अधिकार की पुकार हैं वह,
त्याग की वह राह भी।

कृष्ण जीवन का अनुभव हैं,
कृष्ण गीता ज्ञान भी,
हैं कृष्ण स्वयं आनंद का रूप,
कृष्ण ही गहन ध्यान भी।

~ अनिशा


© Anisha

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