...

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इंतजार
प्रेम साथ चलता है
साथ रहता नहीं कभी भी
मंजिल तो इक ही होती है
पटरियों की भी
और प्रेम की भी
इक साथ चलने की
इक इंतज़ार में जीने की
इक ही आस में मरने की भी।

सोचा था मैंने
खूबसूरत रखूंगी प्रेम से भरे इन पन्नों को
छोटी - छोटी मुलाकातों के क़िस्से
कहानियों की जैसे लिखूंगी
कोई वादा पूरा करूंगी
ख़ाली पन्नों पर कठिन जज्बातों की महक होगी
सुनहरे पंखों वाली तितलियों की मानिंद अनोखें फूलों को चूमने की सारी उमंगे लिखूंगी
कुछ अधूरे चित्रों को गुलाबी और नीले रंगों से रंगूगी
कुछ मौन रंग भी होंगे
लंबे इंतज़ार का
जिसे कैनवास पर उकेरूंगी
प्रेम को पूरा जीने के लिए
अधूरी मालाऐं बनाऊंगी
ताकि बचे धागों में कुछ पूर्णता की मोतियां पिरोई जा सके
और प्रेम को भरपूर जी लिया जा सके।

कल्पनाओं के संसार में भी
सुंदर,मनोरम दृश्य जैसी वस्तियां बसायी जाये
जहां दंगे की परिभाषा कोई नहीं जानता होगा
डर का भी कोई परिचय नहीं होगा
आत्महत्या जैसी संगीनियां से सबकी अंभिज्ञता होगी
कोई भी गहरी रात को देखकर
अपनी ट्रेन नहीं छोड़ता होगा
थोड़े से भी कम पढ़े लोगों की आंखों में
सबके लिए करुणा,दया और परवाह झलकता होगा।

दूर नदी के किनारे बैठा एक प्रेमी मन
अपने प्रेम में मग्न
प्रेम कर्तव्यों में लिप्त
अनोखी चित्रकारियां
अपने कैनवास पर उकेरता होगा
जैसे कोई ब्रह्मांड उकेर रहा हो
उस प्रेम विस्तार का,
जो फैलता जा रहा है निरंतर
अपने उस फैलते विस्तार के लिए
अपने अस्तित्व के लिए
उसे बचाने या प्रेम की परिभाषा को वृहत रूप देने के लिए,
सदियों पुरानी उस इंतज़ार की खातिर
जो रुक - रुक कर, जी रहा किसी में जी उठने के लिए
जैसे आ जायेगा इक दिन एकाएक प्रेम झटपट से
उसका,मेरा,और सबका
उमस खत्म करने के लिए
प्राणवायु से सूखे प्रेम को हराभरा करने के लिए,
और हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा
ये मौन, मूक,बधिर और दृष्टिहीन होता जा रहा कुपोषित इंतज़ार।।


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