एकता का संगम (ekta ka sangam )
अनाथ-आश्रम और वृद्ध-आश्रम को,
यदि एक कर दिया जाए,
इसी बहाने बच्चों को माँ और,
माँ को बच्चे मिल जाएं,
आज के ये मतलबी दौर है,
पैसे के पीछे पागल हर कोई हर ओर है,
ये जरूरी नहीं हर घर में,
माँ को ईश्वर के जैसे जाए पूजा,
घूम कर देखिए ये संसार,
माँ की आँखों से बहते मिल जाएंगे आंसू,
ऐसा मिल जाएगा हर घर दुजा,
धीरे -धीरे हम सब मात-पिता को,
भूलते जा रहे हैं,
हमें सब को ये पता नहीं,
हम किस नशे में झूमते जा रहे हैं,
मात-पिता को हम रखना चाहते नहीं हैं पास,
इसलिए हर पल रहते हैं हम उदास,
हमारे बच्चे कल हमारी सेवा करेंगें,
ये रखतें हैं उनसे बे-मतलब की आस,
सोचते हैं हम बिन सेवा के ही मेवा मिल जाए,
अनाथ-आश्रम और वृद्ध-आश्रम को,
यदि एक कर दिया जाए,
इसी बहाने बच्चों को माँ और,
माँ को बच्चे मिल जाएं,
बिन मात-पिता के बच्चे,
ईश्वर के सिवा और कौन जाने,
उनके दिन बुरे गुजरतें हैं या अच्छे,
बिन...