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कवि कैसे बनूँ
मेरी मन की आग बुझ गई
कवि बनने का शौक बुझ गई
एक छोटा सा दिया लेकर
मैं लिखता रहा सारी रात
सुबह की किरणों ने
बुझा दी मेरी सारी बात
मैं किस क़लम से लिखूं
वो दर्दनाक अल्फ़ाज़
जो मेरे कोरे पन्ने को
कर दिया ऐतराज़
मैं अंदर से सिसक रहा हूँ
एक ऐसा शख्स से कब मिलूं
मैं भी एक कवि बनकर
अनकही कहानी कब लिखूँ
© prashanth K
कवि बनने का शौक बुझ गई
एक छोटा सा दिया लेकर
मैं लिखता रहा सारी रात
सुबह की किरणों ने
बुझा दी मेरी सारी बात
मैं किस क़लम से लिखूं
वो दर्दनाक अल्फ़ाज़
जो मेरे कोरे पन्ने को
कर दिया ऐतराज़
मैं अंदर से सिसक रहा हूँ
एक ऐसा शख्स से कब मिलूं
मैं भी एक कवि बनकर
अनकही कहानी कब लिखूँ
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