...

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बसना। (ख़ुशबू)
तुम क्या हो? के तुम नहीं!
एक मैं हूं!जो मैं हूं नहीं!

तुम अब भी याद करती हो?
कमाल हैं?मुझे कुछ याद नहीं!

मैंने बिछड़ते सवाल किया था,
उस ज़वाब का, ज़वाब नहीं!

तुम्हारें बाद न आया कोई यहां,
बुलाया नहीं,कोई भूल आया नहीं!

देख तो जाते मेरे खून के आंसू!
यह मुर्दा जिस्म,फिर रोया ही नहीं!

अब आना तो फूल लेकर आना,
मैंने बागों से बसना मांगा नहीं!

तुम गए फिर ख़ुदा भी गया,
मेरी दुआ यहीं,के बद्दुआ नहीं!

अब क़ब्र हैं दीवार बिच हमारे,
तुमने बोला नहीं,मैने सुना नहीं!

शाम तक में ढलता रहा कनारे पर,
तुम्हारी याद आई,पर तुम नहीं!

अब के अंधे होकर मिलना यार,
शहर अंधों का हैं,अंधेरे का नहीं!

© वि.र.तारकर.