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जो फ़िराक़ में ना डूबा वो भला शायर क्या है
मैंने सुना है नगमा तेरी दिलकश निग़ाहों का
मैं वाक़िफ हूं उस तराने से
जो तेरी मुस्कान से निकली फिज़ा में है

अक्सर मैंने चाहा तेरा वो चेहरा दरख़्शाँ
मांगा तर्ज़-ए-मोहब्बत जो तेरी पनाहों में है

लेकिन मुझे मालूम नहीं कोई रास्ता
जो ले जाए हुस्न-ए-गुलिस्तान
मैंने शिक़स्त-ए-इश्क में यह उम्र गुज़ारी है

वोह आते हैं, वोह आएंगे
उल्फत के ख़्वाब यूं ही सताएंगे
इजाज़त ख्वाबीदा रहेगी तेरी
मेरे अरमान अश्क बहलाएंगे

यह कलम मेरी हमनवा है
तेरा हुस्न मेरा रहबर सदा है
तेरे हिज्र से कोई रिश्ता है मेरा
जो फ़िराक़ में ना डूबा वो भला शायर क्या है
© Harf Shaad

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