तुम्हें लिखना चाहा.....
मैंने जितनी बार तुम्हें लिखना चाहा,
धँस गया मैं शब्दों के दलदल में
सोचता हूं कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें,
उनके मुँह से निकले सारे आकांक्षाओं को पूरा कर दूँ अभी
ऐसी क्या मजबूरी रही होगी उनकी, जो वो रात- रात भर जागते हैं,
मुझे दो वक़्त की रोटी देने के लिए वो कई दिन घर भी ना आते हैं
भले ही गुस्से में कभी-कभी डांट देते हैं मुझे,
कभी अपने प्यार को जताया ना हुआ तो क्या हुआ पर सबसे ज्यादा प्यार करते हैं वो मुझे
भले ही कभी मेरे सामने मेरी तारीफ ना की हो तो क्या हुआ,
पर दुनिया के सामने गर्व से मेरी कामयाबी के किस्से सुनाते हैं
अगर माँ ममता की मूर्त है,
तो पापा त्याग के देवता हैं,
क्योंकि अपने आज का त्याग करते हैं वो,
भेजने के लिए हमें सुंदर कल में
हमारी इच्छाओं को पूरा को करने के लिए,
त्याग देते हैं अपनी इच्छाओं को पल में,
मैंने जितनी बार उन्हें लिखना चाहा,
धँस गया शब्दों के दलदल में ।।
हरिओम गुप्ता
धँस गया मैं शब्दों के दलदल में
सोचता हूं कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें,
उनके मुँह से निकले सारे आकांक्षाओं को पूरा कर दूँ अभी
ऐसी क्या मजबूरी रही होगी उनकी, जो वो रात- रात भर जागते हैं,
मुझे दो वक़्त की रोटी देने के लिए वो कई दिन घर भी ना आते हैं
भले ही गुस्से में कभी-कभी डांट देते हैं मुझे,
कभी अपने प्यार को जताया ना हुआ तो क्या हुआ पर सबसे ज्यादा प्यार करते हैं वो मुझे
भले ही कभी मेरे सामने मेरी तारीफ ना की हो तो क्या हुआ,
पर दुनिया के सामने गर्व से मेरी कामयाबी के किस्से सुनाते हैं
अगर माँ ममता की मूर्त है,
तो पापा त्याग के देवता हैं,
क्योंकि अपने आज का त्याग करते हैं वो,
भेजने के लिए हमें सुंदर कल में
हमारी इच्छाओं को पूरा को करने के लिए,
त्याग देते हैं अपनी इच्छाओं को पल में,
मैंने जितनी बार उन्हें लिखना चाहा,
धँस गया शब्दों के दलदल में ।।
हरिओम गुप्ता