...

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मैं सच्चाई हूँ

कोई तिलिस्म नहीं आफ़त हूँ,
शरारत के साथ शराफ़त हूँ...
कोई बेशक़ीमती हीरा नहीं,
मैं स्फटिक का पत्थर सही,
मैं थमे पानी की काई हूँ,
रुठे दिल की रुसवाई हूँ,
मुझे जाननशीं न समझ,
मैं तलब की गहराई हूँ...
कभी उन्स हूँ,
कभी ख़ाक हूँ,
कभी एक लंबी तन्हाई हूँ...
कभी रूह हूँ,
कभी लिबास हूँ,
कभी मुसलसल परछाई हूँ...
जो कल थी आज याद हूँ
एक मर्ज़ लाइलाज़ हूँ
कभी मोहब्बत की पैरवी,
कभी दफ़न एक राज़ हूँ...
कभी खोया एक चाँद सा,
आज मुद्दों की आवाज़ हूँ,
कभी सुरमई लोरी सा
कभी करकाश साज़ हूँ
मैं शूल हूँ मैं फूल हूँ
कभी धधकती आग हूँ,
मैं बात हूँ ,जज़्बात हूँ
ज़ात हूँ, बदजात हूँ
मैं लहू हूँ, माँस हूँ
ज़िन्दगी का आग़ाज़ हूँ
एक दिन बेहतरीन समझ
शब की रात हूँ
चश्म हूँ, दीदार हूँ
कभी हूनर हूँ, कभी बेज़ार हूँ
पहचान का निशां कभी
कभी समंदर की गहराई हूँ
मैं फ़र्द हूँ , फर्ज़ हूँ
सहूलियत की ढलाई हूँ
कुनबों को जोड़ती मखमली सिलाई हूँ।
मैं अर्थ हूँ सामर्थ हूँ
मैं एक सच्चाई हूँ।.....

मनीषा राजलवाल

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