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जो कभी मिट सकती नहीं
मैं अपने आसमान का परिंदा
अपने ध्यान अपनी शान लिए उड़ता हूं
परवाह करूं और अब किसकी
नज़रों में उतर चुकी वह मूरत
चाह लिए जिसकी मैं उड़ता हूं
कोई पुकारता है चीख चीख
पर नजर भटकती नहीं
ये कैसी धुन समाई मुझमें
कि चाह के भी बिखरती नहीं
फितनाओं और परियों की सूरतें भी
दिल में उतरती नहीं
मेरी परवाज़ की कहानी
सारे जहां की बन चुकी है रौशनी
मिशाल ऐसी बन गई
जो कभी मिट सकती नहीं....।
© सुशील पवार
अपने ध्यान अपनी शान लिए उड़ता हूं
परवाह करूं और अब किसकी
नज़रों में उतर चुकी वह मूरत
चाह लिए जिसकी मैं उड़ता हूं
कोई पुकारता है चीख चीख
पर नजर भटकती नहीं
ये कैसी धुन समाई मुझमें
कि चाह के भी बिखरती नहीं
फितनाओं और परियों की सूरतें भी
दिल में उतरती नहीं
मेरी परवाज़ की कहानी
सारे जहां की बन चुकी है रौशनी
मिशाल ऐसी बन गई
जो कभी मिट सकती नहीं....।
© सुशील पवार
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