...

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जायका गरमी का...
ठिठुर रहे थे हम
हाथ पैर हो रहे थे सुन्न
न हाथ से कलम पकडी जा रही थी
न आगे की थाली सुहा रही थी
खाने के बाद हाथ भी तो धोना होगा
छोडो एक टाईम न खाए तो भी चलेगा
पर हमे बडा आश्चर्य होता है
दीमाग मे इतनी गरमी कहाँ से आती है
माशाअल्लाह खयाल इतने गरम गरम
कंबल के अंदर भी गरमी तभी मिलती है
जब हथेलियों मे हो कुछ नरम नरम
मै तो कहता हूँ इंसान के मन मे
शैतान छुपे बैठे है
शादी शुदा हो या अकेला
सबकी ख्वाहिश बस एक ही है
कंबल भले ही सिंगल हो
पर सोनेवाले डबल हो
मेरी सरदी से बिलकुल ही नही बनती
क्या करूँ नसीब से लड नही सकता, और
दुसरे से छीन नही सकता
सबको देखकर जलता हूँ
पडा पडा मै गलता हूँ ( सरदी से भाई)
पेपर मे इश्तेहार की अर्जी डाली है
कोई कैसी भी आए जो बने मेरी घरवाली हो
फोन सुबह ही खंगालता हूँ
मिस्ड काल को निहारता हूँ
अब तक तो एक काल भी आया नही
शायद सरदी मे लिखा नही
मेरे मित्रो, यारो मदद करो
एक Temporary बीबी का जुगाड करो
ये सरदी मुझे निगल जायेगी
दीवार पे चित्र टंग जायेगी
क्या फायदा तब पछताओगे
रोकर मेरा हाल सुनाओगे
यदि मित्र मेरे सच्चे हो तुम
तो एक बीबी मुझे दिलाओ तुम...।।