...

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जायका गरमी का...
ठिठुर रहे थे हम
हाथ पैर हो रहे थे सुन्न
न हाथ से कलम पकडी जा रही थी
न आगे की थाली सुहा रही थी
खाने के बाद हाथ भी तो धोना होगा
छोडो एक टाईम न खाए तो भी चलेगा
पर हमे बडा आश्चर्य होता है
दीमाग मे इतनी गरमी कहाँ से आती है
माशाअल्लाह खयाल इतने गरम गरम
कंबल के अंदर भी गरमी तभी मिलती है
जब हथेलियों मे हो कुछ नरम नरम
मै तो कहता हूँ इंसान के मन मे
शैतान छुपे बैठे है
शादी शुदा हो या अकेला
सबकी...