...

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सन्नाटा
ये सन्नाटा अब अच्छा लगने लगा है,
हर तरफ बिखरे उस शोर से सच्चा लगने लगा है,
ये सन्नाटा अब अच्छा लगने लगा है।

दवा भी नहीं कोई, न किसी का सहारा है,
यही एक रास्ता है अब,
जो जिंदगी को प्यारा है।

मंजर मौत का एक ऐसा आया है,
गुनाह इंसानो का जिसने इंसानो को ही दिखलाया है,
कि कितना उसने कुदरत को रुलाया है;

ना असर होता दवा का,
ना किसी दुआ का आसरा है;
ये यूँ ही बेवजह तो नहीं,
शहरों में सन्नाटा जो ये पसरा है।

सुनसान है गांव की गलियाँ, शहर भी शांत हैं,
दुनिया को बचाने बैठा इंसान, एकांत है।

आरजू है सुकून की, तो कुछ पल खुद को दो,
खुद भी जियो, दूसरों को भी जीने दो,
ये खेल अनोखा किस्मत ने खेला है,
पंछी उड़ रहे खुले आसमां में,
और इंसाँ आज अकेला है।

© midnyt_ink