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बिखर
#बिखर

दिल है साहब जिसका कोई हमसफ़र नहीं
जितना बिखर जाता है उतना ही
वक्त के थपेड़ो के साथ साथ
निखर कर किलक उठता है ।
इसकी कोई उमर नहीं होती
जब चाहे जहां चाहे
वहां वह अटक सकता है
भटक सकता है निखर सकता है
बिखर सकता है
आखिर दिल ही तो है
जो बे लगाम होता है
बेपनाह मोहब्बत के साथ ।