...

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दृश्य
औसतन हर आँख
खींचती है सुन्दर दृश्य
लहलहाते, मुस्कुराते, नाचते-गाते
और महफ़िल सजाते दृश्य
श्रव्य दृश्य, दीप जलाते फीता काटते
कटाते, रैलियों में उतर आते दृश्य,
कितनी ऊँचाईयों के, गर्वित होने के,
लबालब रौशनी से चौंधियाते दृश्य
अकारण भी देख ही लेती है आँखें
आस-पास के, पास-पड़ोस के
दृश्य खोजी पत्रकार से ,
न जाने क्यों दिख कर भी नहीं
दिखते या शायद स्मृति से झाड़ दिये
जाते हैं सड़क पर देह और सिर खुजाते दृश्य, अकेली लड़की के असहजता भरे, घर में स्त्री के बोन्साई में तब्दील होते दृश्य,
आशाओं से पराजित निराश दृश्य
घृणा और धृष्टता अनियमितता के दृश्य,
भूख से कुम्भलाए दृश्य,
पत्नी पर पुरुषत्व दिखाते दृश्य
तपती धूप पर नंगे नन्हे पाव के दृश्य
अनगिनत,अनचाहे रूढ़ियों के दृश्य
कसमसाहटे बेचैन दृश्य,
दिखते नहीं पर बिकते ज़रूर हैं..
--Nivedita