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कितनी शिद्दत से
🌷कितनी शिद्दत से🌷
कितनी शिद्दत से... साथ निभाता है कोई,
रूठ जाऊँ बात-बात पे तो मनाता है कोई।
दिन-भर की थकन.. मिटातीं है वो पुकार,
शाम घर आते जब... मुझे बुलाता है कोई।
पत्थर सी फ़ितरत दिखाता है ऊपर से वो,
प्यार भरा स्पर्श पाकर पिघल जाता है कोई।
कितने अनकहे लफ्ज़ होठों पर छिपाये हुये,
बस निगाहों से हर बात कह जाता है कोई।
दिनों-दिन बढ़ता ही है स्नेह, घटता ही नहीं,
धूप में छाँव सा.....एहसास दे जाता है कोई।
सुबह उठते ही ज़िम्मेदारियाँ समेटकर अक़्सर,
रिश्तों की देहरी पे शाम दीप जलाता है कोई।
कुहासे ग़मों के उसकी रौशनी से राहत हैं पाते,
मायूस जो हो जाऊँ तो दुःखी हो जाता है कोई।
वो तो हमसफ़र, हमदम, हमराज़ है नूर मेरा,
ज़िंदगी है मेरी हसीं साये में उसके खोई-खोई।
--Nivedita
कितनी शिद्दत से... साथ निभाता है कोई,
रूठ जाऊँ बात-बात पे तो मनाता है कोई।
दिन-भर की थकन.. मिटातीं है वो पुकार,
शाम घर आते जब... मुझे बुलाता है कोई।
पत्थर सी फ़ितरत दिखाता है ऊपर से वो,
प्यार भरा स्पर्श पाकर पिघल जाता है कोई।
कितने अनकहे लफ्ज़ होठों पर छिपाये हुये,
बस निगाहों से हर बात कह जाता है कोई।
दिनों-दिन बढ़ता ही है स्नेह, घटता ही नहीं,
धूप में छाँव सा.....एहसास दे जाता है कोई।
सुबह उठते ही ज़िम्मेदारियाँ समेटकर अक़्सर,
रिश्तों की देहरी पे शाम दीप जलाता है कोई।
कुहासे ग़मों के उसकी रौशनी से राहत हैं पाते,
मायूस जो हो जाऊँ तो दुःखी हो जाता है कोई।
वो तो हमसफ़र, हमदम, हमराज़ है नूर मेरा,
ज़िंदगी है मेरी हसीं साये में उसके खोई-खोई।
--Nivedita
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