...

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"प्रेम!"
सुनो!

तुम्हें याद है न तुम्हारे घर के
सामने का वो फॉर्म हॉउस,
कभी देखना मोहब्बत से उधर
मेरी चाहतें वहाँ आबाद है!

छत की चहरदिवारी पे बैठना,
सुकून से तारों को गिनना,
फुरसत मिलें तो महसूस करना,
मेरा सपना वहाँ आज़ाद है!

तुम्हारे गाँव का वो घर,जहाँ
तुम मुझे ले जाना चाहते थें,
फिर आना तो देखना,हर
दरवाजे पे मेरे हाथ की छाप है!

वो माँ की साड़ी जो तुमने
सिर्फ मेरे लिए रखवाई थी,
उसे छूना तो देखना,उसके
हर रेशे को मेरी ही आस है!

ठाकुर जी पे चढ़ा गुलाब,तुम्हे
पहली मुलाकात में दिया था,
महके तो अहसास करना,उसमें
मेरी पुर्नमिलन की आस है!

© नेha शुkla "शून्य"