"प्रेम!"
सुनो!
तुम्हें याद है न तुम्हारे घर के
सामने का वो फॉर्म हॉउस,
कभी देखना मोहब्बत से उधर
मेरी चाहतें वहाँ आबाद है!
छत की चहरदिवारी पे बैठना,
सुकून से तारों को गिनना,
फुरसत मिलें तो महसूस करना,
मेरा सपना वहाँ आज़ाद है!...
तुम्हें याद है न तुम्हारे घर के
सामने का वो फॉर्म हॉउस,
कभी देखना मोहब्बत से उधर
मेरी चाहतें वहाँ आबाद है!
छत की चहरदिवारी पे बैठना,
सुकून से तारों को गिनना,
फुरसत मिलें तो महसूस करना,
मेरा सपना वहाँ आज़ाद है!...