...

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सुनसान पड़ा
आज गाँव सुनसान पड़ा; इंसानों से अनजान पड़ा।
बस्ती बस्ती खाली खाली; शहरी गलियां वीरान पड़ा।।

पूछ रहें खिड़की दरवाजे; शोर कहाँ खो गया यहां से।
घर आंगन खाली खाली सा; बगिया भी सुनसान पड़ा।।

कैसी विपदा आयी सब पर; रोटी को सब हैं तरस रहें।
व्यापारियों के दरवाजे पर; महज़ ताला ही वीरान पड़ा।।

अस्पताल बन गया है घर; जाने और कितने हुए बेघर।
भर पड़ा अब कब्रिस्तान; और मुर्दों से भरा श्मशान पड़ा।।

मिट्टी के पुतलों की ये दुनियां; जाने कैसी उबर पाएंगी।
देख काल का दशा भयावह; सोचकर इंसान हैरान पड़ा।।

© नेहकिताब