पुरुष
जिस समाज में पहले ही जीना हराम है नारी का....
उसमें खूब मज़ा लेते हैं कुछ पुरुष बेचारी का।
जिन्हे प्रेमिका भी चाहिए, मां भी जरूरी है...
मगर ऑफिस जाती महिला उनके लिए सबसे बुरी है।
ये ढोंग करने वाले महान आदमी , अंदर से कुछ और हैं....
इन्हें पैसे से मतलब है, बाकी इनके लिए क्या है कौन है।
ये शर्म नहीं जानते, गाली देते हैं
बेतुकी सी बातों पर ताली देते हैं।
साथ देना दूर , ये धक्का देते हैं
महिला की तरक्की देख कर खुद को हक्का बक्का कर लेते हैं।
उसमें खूब मज़ा लेते हैं कुछ पुरुष बेचारी का।
जिन्हे प्रेमिका भी चाहिए, मां भी जरूरी है...
मगर ऑफिस जाती महिला उनके लिए सबसे बुरी है।
ये ढोंग करने वाले महान आदमी , अंदर से कुछ और हैं....
इन्हें पैसे से मतलब है, बाकी इनके लिए क्या है कौन है।
ये शर्म नहीं जानते, गाली देते हैं
बेतुकी सी बातों पर ताली देते हैं।
साथ देना दूर , ये धक्का देते हैं
महिला की तरक्की देख कर खुद को हक्का बक्का कर लेते हैं।
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