ध्यान का सार
एक बार एक संत प्रात: काल ,
नदी तट पर पहुंचा ।देखा
एक लड़का डूब रहा था ,
वह कुछ ना सोच कूदा।
तो बचा लिया बच्चे को,
ईश्वर की कृपा थी।
लेकिन तभी नजर पड़ी ,
संत की तट के सामने ।
एक व्यक्ति बैठा था,
ध्यान की मुद्रा पाने।
संत उनके पास गए
और विनम्र होकर बोले -
"यदि ध्यान नहीं लगा है ,
तो कृपया आंखें खोलें।"
विनम्र निवेदन को सुन ,
श्रोता ने आंखें खोल दी ।
तभी संत ने प्रश्न किया-
"क्या लड़के की पुकार सुनाई दी?"
सुनाई तो दी थी पर,
मैं ध्यान की चेष्टा मे था लगा ।
प्रयत्न विफल हो रहे थे,
पर संयम मैंने रखा।
तभी संत हंसकर बोले -
"कैसी करते बाते हो ,
इस तरह ध्यान कभी लगे नहीं ,
क्यों अपना समय व्यर्थ कराते हो। "
"ईश्वर ने तुम्हें अवसर दिया था ,
सेवा धर्म निभाने को
व्यर्थ में उसे नकारा तुमने ।
अब क्या है शिवा पछताने को ।"
"जान जाओ हे विवेकी!
ये ईश्वर का संसार है।
अगर कुछ यहां है उजड़ रहा ,
तो उसे संवारना ही,
ध्यान का सार है।।
© श्रीहरि
नदी तट पर पहुंचा ।देखा
एक लड़का डूब रहा था ,
वह कुछ ना सोच कूदा।
तो बचा लिया बच्चे को,
ईश्वर की कृपा थी।
लेकिन तभी नजर पड़ी ,
संत की तट के सामने ।
एक व्यक्ति बैठा था,
ध्यान की मुद्रा पाने।
संत उनके पास गए
और विनम्र होकर बोले -
"यदि ध्यान नहीं लगा है ,
तो कृपया आंखें खोलें।"
विनम्र निवेदन को सुन ,
श्रोता ने आंखें खोल दी ।
तभी संत ने प्रश्न किया-
"क्या लड़के की पुकार सुनाई दी?"
सुनाई तो दी थी पर,
मैं ध्यान की चेष्टा मे था लगा ।
प्रयत्न विफल हो रहे थे,
पर संयम मैंने रखा।
तभी संत हंसकर बोले -
"कैसी करते बाते हो ,
इस तरह ध्यान कभी लगे नहीं ,
क्यों अपना समय व्यर्थ कराते हो। "
"ईश्वर ने तुम्हें अवसर दिया था ,
सेवा धर्म निभाने को
व्यर्थ में उसे नकारा तुमने ।
अब क्या है शिवा पछताने को ।"
"जान जाओ हे विवेकी!
ये ईश्वर का संसार है।
अगर कुछ यहां है उजड़ रहा ,
तो उसे संवारना ही,
ध्यान का सार है।।
© श्रीहरि