ग़म - ए - दिल
ज़माने भर का गम ख़ुद में ही अब तो समा लेता हूं।
मैं जो हूं ज़िंदादिल तो आंखें फिर से मिला लेता हूं।
मुझको थी प्यास कहां इश्क में हो मुकम्मल कभी।
जो दर्द है ज़माने में उसे हैरत में भी अपना बता लेता हूं।
तालियों की ख्वाहिश...
मैं जो हूं ज़िंदादिल तो आंखें फिर से मिला लेता हूं।
मुझको थी प्यास कहां इश्क में हो मुकम्मल कभी।
जो दर्द है ज़माने में उसे हैरत में भी अपना बता लेता हूं।
तालियों की ख्वाहिश...