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नही मैं भटकी थी
🙏 ... नही मै भटकी थी 🙏
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गांव - शहर बस्ती - बस्ती में,
मैं भी भटका करती थी।
निर्धन के संग साथ मिल,
फसल काट दिखलाती थी।।

अन्न ढेर जब लग जाता,
तब सभी दुआए देती थी।
कुछ पल मैं भी भावों में,
तब खो जाया करती थी।।

शाम ढले जब घर आती,
किस्सा सबको बतलाती थी।
वाह ! " अमृता " गजब किया,
फोन पे सुना करती थी।।

तब भी थे कुछ लोग यहां,
जिनको खटका करती थी।
लेकिन अपने कर्म राह से,
कभी नहीं मैं भटकी थी।।
🙏 डॉ अमृता, समस्तीपुर 🙏
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