...

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गुज़रा वक्त
जो गुज़र गया
उस वक्त का इंतज़ार कैसा
वक्त किसी के साथ नहीं देता
यह तो सिर्फ अतीत के
पन्ने को ही दोहराता,
किसी का घर छूटा तो
किसी का दिल ही टूटा
यही कहानी ही कहता
भले इसका इंतज़ार कैसा।

हम नासमझ इंसान
अपने को क्यों नहीं समझा पाते
इसे याद करके जख्मों को कुदेरते
जुबां ना कुछ कहता दिल ही रोता
अंदर ही अंदर रूह छटपटाता
जो कभी अपना ही न थे
यह उसकी ही याद दिलाता।