"पिता के जैसा कोई नहीं"
दुआओं में ग़र मैं माँगू कुछ तो,
पिता सा फ़रिश्ता हर किसी को मिले..!
ख़ुद पहने जिसने फटे पुराने कपड़े,
पर ज़ख़्म बच्चों के प्यार से सिले..!
बाग़बाँ हैं वो जिन्होंने जिया न एक पल,
औरों को सुगन्धित कर के खिले..!
पिता के जैसा कोई नहीं,
फ़ीके हैं आगे जिनके ख़ूबियों के किले..!
मुश्किलों में हिम्मत का हिमालय हैं पिता,
बिन उनके ज़िन्दगी कब तक चले..!
दिन रात यादों में जागती ये आँखें,
ज़िन्दगी ग़म में हर दिन जले..!
© SHIVA KANT
पिता सा फ़रिश्ता हर किसी को मिले..!
ख़ुद पहने जिसने फटे पुराने कपड़े,
पर ज़ख़्म बच्चों के प्यार से सिले..!
बाग़बाँ हैं वो जिन्होंने जिया न एक पल,
औरों को सुगन्धित कर के खिले..!
पिता के जैसा कोई नहीं,
फ़ीके हैं आगे जिनके ख़ूबियों के किले..!
मुश्किलों में हिम्मत का हिमालय हैं पिता,
बिन उनके ज़िन्दगी कब तक चले..!
दिन रात यादों में जागती ये आँखें,
ज़िन्दगी ग़म में हर दिन जले..!
© SHIVA KANT