...

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कठपुतली
सुखे होंठों पर दो बात दबा कर
नम आंखों में कई दर्द छिपा कर
अपनी जिंदगी के स्याही से
हमारी जीवन की पहेली सुलझाती है
अपने जीवन के सारे रस निचोड़ कर
हमारी जिंदगी सींचती रह जाती है
बेटी बहन पत्नी और मां के रूप में ही
अपनी गाड़ी खींचती रह जाती है
प्रकाश की किरण आने से पहले ही
अंधकार के चक्रव्यूह में फंस जाती है
अपने सपने को रंगने से पहले ही
उसकी दुनिया बेरंग हो जाती है
अपने बोझ को उतारने की कोशिश में
दुनिया की सोच में दब जाती है
और जब उसकी एक आवाज उठती है
तो हर कानों में खटक सी जाती है
मतलबी दुनिया में उसकी
आत्म सम्मान वही दफन हो जाते हैं
किस्मत की फाटक तो खुलती नहीं है
बस वो औरत कठपुतली बनकर रह जाती है ।।।