...

1 views

2 जून की रोटी
2 जून की रोटी
कभी कच्ची-कभी पक्की
कभी वो भी नसीब नहीं होती
2 जून की रोटी कहना है आसान
मग़र कमाना बहुत ही मुश्किल ...!!
सर्दी गर्मी और वर्षा
अत्यधिक यहां होती.!
उपयुक्त जलवायु ना मिलने से
फसलें पर्याप्त नहीं उगती ..!!
2 जून की रोटी की खातिर
क्या-क्या नहीं करते हम उम्र भर"
धूप में जलते नंगे पांव चलते
मजदूरी करके पेट है भरते
शरद ऋतु वर्षा ऋतु और
ग्रीष्म ऋतु की ताप है सहते,
फिर भी नहीं कभी-कभी
हमें 2 जून की रोटी नसीब होती..!!
पांव में पड़ गए छाले"
नंगे पांव चलते चलते"
जाड़े में ठिठुर गई हड्डियां
फिर भी दया हम पे नहीं करते
वाह रे ऊपर वाले
क्या खूब बनाई तूने दुनिया
कोई रोटी का मोल न समझे
तो कोई रोटी रोटी को तरसे ..!!
ताप्ती जलती धूप में भी
कम पर जाना नहीं छोड़ते
2 जून की रोटी की खातिर
किस्मत आजमाना नहीं छोड़ते ..!!
ना रहने का ठिकाना
ना ही कोई घर है अपना
सड़क किनारे और चौराहे
यही तो है अपना आशियाना
तन ढकने को कपड़ा नहीं
मजदूरी से भी पेट भरता नहीं
किससे कहें हाल अपना
कौन सुनेगा फरियादी यहां..?
किसी को किसी से मतलब नहीं
कैसी है ये स्वार्थी दुनियां
कोई जले या बुझे
किसी के लिए कोई रोता नहीं यहां
आसान नहीं 2 जून की रोटी कमाना
ऐ मेरे मालिक बस इतनी कृपा करना
2 जून की रोटी सबके हिस्से में लिखना!!
किरण