//मैं तो मैं भी नहीं//
//मैं तो मैं भी नहीं//
कुछ अरमान मर चुके जिंदगी बेजान सी कट रही हैं।
एक सुकून की तलास में ना जाने कहाँ कहाँ भटक रहे हैं।
सच कहे तो होठों से हंसी भी नदारत रहते हैं,
किस मौसम की करू तमन्ना हर मौसम में जख्म हरे रहते हैं।
बन मोम की गुड़ियाँ हर रोज पिघलती रही,
वो आ कर...
कुछ अरमान मर चुके जिंदगी बेजान सी कट रही हैं।
एक सुकून की तलास में ना जाने कहाँ कहाँ भटक रहे हैं।
सच कहे तो होठों से हंसी भी नदारत रहते हैं,
किस मौसम की करू तमन्ना हर मौसम में जख्म हरे रहते हैं।
बन मोम की गुड़ियाँ हर रोज पिघलती रही,
वो आ कर...