ग़ज़ल : दर ब दर का मैं मुसाफ़िर हूँ
दर ब दर का मैं मुसाफ़िर हूँ
मैं मोहब्बत का मुसाफ़िर हूँ
तूने देखा ही नहीं मुझको
तेरे घर का मैं मुजाविर हूँ
जाने कब होगा मिरा तेरा
आज भी मैं बस मुहाजिर हूँ
तुमने परखा ही नहीं मुझको
मैं जवाहर में जवाहिर हूँ
यह अना कैसी, गुमाँ कैसा
तुम क्या मैं भी याँ अनासिर हूँ
यह...
मैं मोहब्बत का मुसाफ़िर हूँ
तूने देखा ही नहीं मुझको
तेरे घर का मैं मुजाविर हूँ
जाने कब होगा मिरा तेरा
आज भी मैं बस मुहाजिर हूँ
तुमने परखा ही नहीं मुझको
मैं जवाहर में जवाहिर हूँ
यह अना कैसी, गुमाँ कैसा
तुम क्या मैं भी याँ अनासिर हूँ
यह...