...

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ना उम्र की सीमा हो
ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !
ना बीस का जोश,
ना साठ की समझ,
ये हर तरह से गरीब होती है ।
ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !
सफेदी बालों से झांकने लगती है,
तेज दौड़े तो सांस हांफने लगती है,
टूटे ख्वाब, अधुरी ख्वाइशें,
सब मुँह तुम्हारा ताकने लगती है ।
खुशी इस बात की होती है
कि ये उम्र प्रायः सबको नसीब होती है ।
ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !
ना कोई हसीना मुस्कुरा के देखती है,
ना hi.नजरों के तीर फेंकती है
और आँखे लड़ भी जाये नसीब से
तो ये उम्र तुम्हें दायरे में रखती है ।
कदर नहीं थी जिसकी जवानी में,
वो पत्नी अब बड़ी करीब होती है ।
ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !
वैसे, नजरिया बदलो तो
शुरू से, शुरुआत हो सकती है ।
आधी तो गुजर गयी,
आधी बेहतर गुजर सकती है ।
थोड़ा बालों को .काला
और दिल को हरा कर लो,
अधुरी ख्वाइशों से कोई समझौता कर लो ।
जिन्दगी तो चलेगी अपनी रफ्तार से ही,
तुम बस अपनी रफ्तार काबू कर लो ।
फिर देखो ये कितनी खुशनसीब होती है,
ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !

© amy_s