...

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चलो मुस्करान की वजह ढूंढते हैं।
आँसुओ को बहुत समझाया तनहाई मे आया करो,
महफिल मे आकर मेरा मजाक ना बनाया करो।
आंसू बोले .....
इतने लोगों के बीच भी आपको तनहा पाता हूँ
बस इसलिए साथ निभाने चला आता हूँ ।

जिन्दगी की दौड़ में,तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
हम सीख न पाये फरेब और दिल बच्चा ही रह गया।

बचपन मे जहाँ चाहा हस लेते थे, जहाँ चाहा रो लेते थे।
पर अब मुस्करान को तमीज चाहिए और आँसुओ को तनहाई।

हम भी मुस्कराये थे बेपरवाह अंदाज से ,
देखा है आज खुद को पुरानी तस्वीरों मे ।

चलो मुस्करान की वजह ढूंढते हैं....
तुम हमे ढूंढो .... हम तुम्हें ढूंढते है।।

"आशीष कुमार शर्मा "