...

0 views

गज़ल
ये ग़ज़ल कही गई है उन यारों के नाम
जो चमकते थे कभी उन सितारों के नाम

जो आशियाँ संभाले हैं कोमल कांधों पर
कभी तो दुआ करो उन दीवारों के नाम

कहाँ रहे वे ग़ज़ल कहने और सुनने वाले
ख़ामोशी शेर कह रही है अंधियारों के नाम

गुल, हुस्न, तितली, भँवरे सब फरेब ही हैं
मैं आखिर क्यों ग़ज़ल कहूँ बहारों के नाम ?

हज़ारों की भीड़ जोड़कर जो ये चिल्लाते हैं
नफ़ादार धंधा चला रहे हैं परवर्दिगारों के नाम

एक मुलाक़ात हो ही जाए, चाहे मन से न सही
जो तुमको मुझसे थे कभी उन करारों के नाम

ज़िन्दगी की राहों में याद बस वे ही आते हैं
अंजुमन सजाई जाती हैं मिलनसारों के नाम

गिरते, उठते लहूलुहान मेरी जो ये ज़िन्दगी है
रेलों में गीत गाते उन मासूम गंवारों के नाम

भूख दर्द से लड़ते लड़ते सदा जो चलते रहे
सत्य अहिंसा जैसे पाकीज़ा हथियारों के नाम

जान के बाज़ीगरों से मिलने उत्सुक रहते हैं
तैराकों का स्वागत करते किनारों के नाम

शख्सियत जो आज है, सब उनकी बदौलत है
नाम जो अपना नहीं लेंगे, खाकसारों के नाम

सुना है जिनको कहती हैं वो कि तुम मेरे हो
बड़े ही ऐश से रहते होंगे उन प्यारों के नाम

रघुवीर घर जो लौटे तो पूरा देश बहक गया
गौ घृत भिजवा रही हैं दीप क़तारों के नाम

मेरा नाम अपनी ज़ुबां पर लाओ, करम हो जाय
कौन लेता है इस ज़माने में नाकारों के नाम

जो भी मन के साफ़ हैं, कभी मक़बूल नहीं होंगे
मंचों से पड़े जाते हैं सिर्फ होशियारों के नाम

जानते हुए किसी गोली पे वे आखिर लिखे हैं
रात दिन सीमाओं पर डटे पहरेदारों के नाम

मेरी स्नेह मछलियों को जाने कौन हर ले गए
'सागर' से न पूछो कभी मछुआरों के नाम ।।


© AbhinavUpadhyayPoet