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सावन: मौसम- ए- इश्क़
वक़्त की बाँह थामें यादें बरकरार हैं…
सुने कोई इस मौसम- ए- इश्क़ की सदाएँ,
ये भी तो कितना कुछ कहने को बेकरार है।
ये बारिशें उन्मुक्त गगन में बिखेर जाती हैं कुछ अनकहे- से अल्फ़ाज़…
सुने कोई तो सुनाई देगी,
बारिशों का धरा से विरह और उसकी खामोश आवाज़।
बारिश की इन बूँदों के संग बहने लगा है कारवां यादों का…
उसने पिछले सावन जो वादे किये थे न मोल रहा अब उन वादों का।
हजारों टुकड़ों में ख्वाहिशें बिखर गई टूटकर…
प्रेम की राह का सफ़र भी अजीब रहा,
मंज़िले चली गई हमेशा के लिए हमसे रूठकर।
ये बूंदें कर जाती हैं कुछ शरारतें, कुछ नादानियाँ…
संग...