...

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अंतिम रण
गरजा सिंह का गजनी में,
गांडीव फिर टंकार उठा।
कवि चंद ने चंद कही कविता,
बादलों से प्रगटे प्रभु सविता।
तुर्कों की थम गई थी साँसें,
पृथ्वीराज ने सीधी की बाँहें।
कानों को अपने सज्ज किया,
शब्दभेद का नियत लक्ष्य किया।
गोरी छल-बल में माहिर था,
चौहान पे अब सब ज़ाहिर था।
चढ़ अश्व पे कायर तना रहा,
घायल नरसिंह अनमना रहा।
वह नेत्रहीन वह आत्मबली,
रणवीर-रणंजय-महाबली।
तन चकनाचूर था रक्तसना,
फिर भी अडिग वह वीरमना।
गोरी ने सफल उद्योग किया,
पृथ्वीराज ने विफल प्रयोग किया।
फिर अंत में छल पर खल आया,
भाला लेकर पीछे धाया।
पदतरी ने शुभ संकेत किया,
पृथ्वीराज ने मस्तक भेद दिया।
गोरी का काम तमाम हुआ,
पृथ्वीराज का तय अंजाम हुआ।
कवि चंद ने लाकर दी कटार,
एक दूजे के उर में दी उतार।
सभ्यता उसी पल अस्त हुई,
संस्कृति भी सारी ध्वस्त हुई।
चौहान क्या गए इस वसुधा से,
भगवा की महिमा शून्य हुई।
मस्ज़िदें बनी मंदिर टूटे,
पठानों ने गाँव-शहर लूटे।
ये ख़ुद को महान बताते हैं,
निर्लज्ज न तनिक लजाते हैं।
अब हमको वक्त बदलना होगा,
हिंदू राष्ट्र का पूरा सपना होगा।।
हिंदू राष्ट्र का पूरा सपना होगा।।
©drajaysharmayayaver
© drajaysharma_yayaver

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