तुम कौन हो?
तुम दोस्त हो, यह मंज़ूर है
पर यह रिश्ता दोस्ती पर आँखें मूंद ले
यह अंतर को कुबूल नहीं।
आज शाम हमारी दोस्ती पर कुछ
लिखने बैठी तो सोचा
आज अपने अल्फ़ाज़ों को
स्याही से सजाया जाए...
लफ्ज़ों से खेला जाए, उन्हें परखा जाए।
पर देखो न, जल्दबाज़ी में यह खुदगर्ज़
कालिमा भी मुझसे कुछ रूठ सी गई,
शायद इसे भी हमारा सिर्फ दोस्त होना
मंज़ूर नहीं है ।
अब तुम ही बताओ इन कोरे पन्नों
को किस रंग में सजाऊं...
यह द्वंद्व कुछ बढ़ सा गया है ।
गुलाबी रंग मुझे पसंद नहीं
और लाल अभी कुछ सुहाता नहीं।
ठीक है, अब...
पर यह रिश्ता दोस्ती पर आँखें मूंद ले
यह अंतर को कुबूल नहीं।
आज शाम हमारी दोस्ती पर कुछ
लिखने बैठी तो सोचा
आज अपने अल्फ़ाज़ों को
स्याही से सजाया जाए...
लफ्ज़ों से खेला जाए, उन्हें परखा जाए।
पर देखो न, जल्दबाज़ी में यह खुदगर्ज़
कालिमा भी मुझसे कुछ रूठ सी गई,
शायद इसे भी हमारा सिर्फ दोस्त होना
मंज़ूर नहीं है ।
अब तुम ही बताओ इन कोरे पन्नों
को किस रंग में सजाऊं...
यह द्वंद्व कुछ बढ़ सा गया है ।
गुलाबी रंग मुझे पसंद नहीं
और लाल अभी कुछ सुहाता नहीं।
ठीक है, अब...