...

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अभिमन्यू
यह गाथा है कुरूक्षेत्र के पावन धरती की...
धैर्य शौर्य कर्तव्य धर्म यश अमर किर्ती की...

महाभारत का तेरहवा दिन अर्जुन को‌ कुरूक्षेत्र से दूर रखा...
महायोद्धा को मारने खातिर चक्रव्यूह द्रोण ने घनघोर रचा...

चक्रव्यूह भेदन की कला एक ही वीर को ध्यात थी...
बाहर आने की कहानी अभिमन्यू को अध्यात थी...

यह गाथा है गुरूकुल के तेजस्वी सूर्य की पार्थपुत्र के अमर शौर्य की...
पिता का कर्म जिसने अपना धर्म बनाया यह गाथा है उस कर्तव्य की...

कौरवो के महारथियों संग एक अभिमन्यू ने युद्ध किया...
चक्रधर का भांजा है वह चक्रव्यूह भेदकर सिद्ध किया...

द्रोण कर्ण का मान भेदा और शकुनी का अभिमान भेदा...
दुर्योधन का वस्त्रहरण कर, मां द्रौपदी का अपमान भेदा...

पांडवो का शिष ऊंचा करके जो पार्थिव धरा पर गिर पडा...
काल का स्वागत प्रसन्नता से कर अभिमन्यू ठहरा वीर बडा...

स्वर्ग की नयी परीभाषा लिखती ये शौर्य की रवानी है...
जिंदगी जीने की नहीं सार्थकता से मरने की कहानी है...

ना ही अर्जून सर्वश्रेष्ठ रहा, ना ही कर्ण सर्वश्रेष्ठ रहा...
कर्तव्य खातिर बलिदान हुआ वह कर्म सर्वश्रेष्ठ रहा...

हार जीत होती रही है सदा तीर और तलवार की ...
कहानी शाश्वत रहेगी सदा साहस के ललकार की ...

© Ashish Deshmukh