...

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आज़ादी के अंतिम क्षण
जल रही हैं कोठियाँ,हैं रक्तरंजित रास्ते।
काँप उठी है पावन धरा,असहायों की चीत्कार से।
करुण क्रंदन सुनाई दे रहा,हर गली हर बाग से।
धधक उठी हैं वीर चिताएं,पवित्र प्रज्ज्वलित आग से।

है कैसी अजीब ये विडंबना,है कैसा हृयद-विदारक दृश्य ये।
हर तरफ पसरा विलाप ,हिम्मत भी अब पस्त है।
सहस्त्र वीरों के समूह आज यूँ पड़े मूर्छित से हैं,
काली घटाओं से घिरता हो रहा ये सूरज अस्त है।

महापराक्रमी महावीर की हाय ये कैसी दुर्दशा।
हैं अंग अंग विभक्त पड़े,है ये अतितायिओं की क्रूरता।
स्त्री मोह में पुरुषार्थ को मिला पराजय का पुरस्कार है,
उन्मुक्त गगन में गुंजती ये बेड़ियों की झंकार है।

रायपिथौरा पड़ा भूमि पर,गौरी हिय प्रमोदित है।
करधन खामोश पड़ी,तलवारें म्यानों में शोभित हैं।
शहाब उद्दीन की निर्ल्लज्जता का यह युद्ध अटल प्रमाण है,
दयावीर की दयालुता को मिला,कैसा वीभत्स परिणाम है।
माँ भारती का चूर हुआ, अब खुद का ही अभिमान है।
आज़ादी के आखिरी क्षणों का यही दृश्य,
इतिहास के स्मृति पटल पर विद्यमान है।