...

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हाय अभिमन्यु....
कहि मातु काहे दारुण दुख दीन्हा
हिय के चैन काहे प्रभु हन लीन्हा
करत करुण क्रंदन महतारी
शीश पटक बिलखत सुभद्रा बेचारी।

ज्यों देखा कन्हैया आवत दौड़ी उस ओर
बोलत नाहि पुत्र मोसे पूछत होई भाव विभोर
अब इह जीवन अर्थहीन कोय नाहि मेरौ सहारा
पुत्र संग भेजहु मैकूँ अब नहीं कोय किनारा।

तिय उत्तरा देख विचलित होय
कहति तुम बिन का गति मोरी होय
अब आवत हमहुँ यमलोक ,
नैनन में अब चैन नाहि ,ढूढ़त सुदबुध खोय।

अर्जुन कहि मैं पितृ अभागा
काहे नहि हने प्रभु जीवन हमारा
अब कैं मुख दिखलाऊँ तोय सुभद्रा,
कबहुँ न मिलिहै आपन पुत्र पियारा।
© pagal_pathik