...

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दिल दिया दर्द लिया
अश्क-अश्क बह गया , फिर भी यकीन न आया उनको ,
कोशिशें सब नाकाम हुई यूँ , हर-पल दूर ही पाया उनको।

कमियां ही गिनाते रहे वो , इल्ज़ाम का सिलसिला जारी रहा,
अहम की पट्टी आँखों पर रख , गैरों का तलबगार पाया उनको।

बेबस मन ही उनमें खोया , हर रंज-ओ-गम कुबूल कहते गए,
भुला न सके एक पल भी , सासों की हर लय में पाया उनको।

मन मे कड़वाहट लिए जाने कैसी , सर-ए-राह छलते ही रहे ,
झूठी मुस्कुराहट में उलझकर , दिल मेरा समझ न पाया उनको।

अब तो बिखर ही चुकी बेइन्तहा , हर बात पर दम घुटता मेरा ,
विश्वास उठ गया खुद से भी , जब हर ज़ख़्म पर पाया उनको।

नींदों से भी हुई बग़ावत , अपलक करवटे बदल बीतती शब ,
जब भी देखा चाँद को एकटक , उसमें भी तो पाया उनको।

मिलेंगी महफिलें बेशक़ उनको , पर मेरी कमी तो तड़पायेगी ,
नश्तर चुभेंगे मेरी चाहत के , लगेगा उनको ज़र्रा-ज़र्रा ढह गया।
--@NURI (नैरिती)..💞💞