...

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दिल दिया दर्द लिया
अश्क-अश्क बह गया , फिर भी यकीन न आया उनको ,
कोशिशें सब नाकाम हुई यूँ , हर-पल दूर ही पाया उनको।

कमियां ही गिनाते रहे वो , इल्ज़ाम का सिलसिला जारी रहा,
अहम की पट्टी आँखों पर रख , गैरों का तलबगार पाया उनको।

बेबस मन ही उनमें खोया , हर रंज-ओ-गम कुबूल कहते गए,
भुला न सके एक पल भी , सासों की हर लय में पाया...