...

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अधूरी जिन्दगी
कुछ इस तरह से मजबूर हुए, हम आज हालात से;
हाल बद से बत्तर ,और हम हुए लाचार से;

जिन चेहरों में देखे थे ,ख्वाब जिंदगी के सभी ;
उन चेहरों ने ही छीन ली हंसी, और दे दी मेरी आंखों में नमी ;

सब्ज बागीचे के फूल के, बदरंगीन से दिख रहे ;
सूखे दरख्त ख्वाब के, जीने के निशां मिट चुके;

तितलियां अब खोजें कहाँ,बुलबुले भी मिट चुकी;
दूर की कोयल भी ,अब तो चुप हो चुकी ;

सावन भी सूखा भादो भी सूखा,और किसी को अब क्या कहे;
वक्त का पहिया चला ,पर सूई अटक कर रह गई ;

आस अधूरी रह गई ,प्यार अधूरी रह गई ;
जीने का ढंग हम भूले ,तो सांस अधूरी रह गई।।
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